सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

जुलाई 30, 2019 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मेरे पापा -कवि अनिल कुमार अमरपुरा,पापा पर कविता

मेरी मंजिल के रास्ते पर, जो दिख रही सफाई है! सच बताऊं, मेरे पापा ने वहां सालों से झाड़ू लगाई है!! मत देखो मेरे कदमों के छालों को, जीता हूं जो मैं जिंदगी की ये दौड़, सच बताऊं, वो दौड़ भी मेरे पापा ने लगाई है!! कवि- अनिल कुमार अमरपुरा