अजी सुनते हो,बिटिया के लिए अच्छा सा लड़का देखकर इसकी शादी कर दीजिए।आजकल जमाना बहुत खराब है- पत्नी ने अपने पति से चिंता जताते हुए कहा। पति ने भी हामी भरते हुए कहा- हां भाग्यवान!तुम सही कह रही हो,गांव में नारायण दास की बेटी ने भी भागकर शादी कर ली,पूरे गांव में नाक कट गई बेचारे की।
नहीं-नहीं हमारी बिटिया ऐसी नहीं है,हमने भला उसे पालने में कोई कमी छोड़ी है,हमने उसे संस्कार दिए है।
बरामदे में खड़ी उनकी लाडली बेटी सरोज यह सब सुन रही थी।अरे बेटी!तुम कब आई?पापा ने सकपकाते हुए पूछा।
पापा मुझे शादी नहीं करनी!बेटी सरोज ने हिम्मत करते हुए कहा।कमरे में खामोशी छा गई।पापा मुझे वो सब नहीं करना जो एक लड़की हमेशा से करती आई है।मुझे शादी के बन्धन में मत बांधो।मुझे समाज के लिए कुछ करना है,आपका नाम रोशन करना है,मुझे भारत देश का नाम रोशन करना है पापा!सरोज ने एक सांस में सब कुछ बोल दिया।
बचपन में जीवों पर दया करने का पाठ पढ़ाने वाली मां व समाज सेवा से ईश्वर प्राप्ति का पाठ पढ़ाने वाले पापा,दोनों अपनी बेटी के मुख से यह बात सुनकर अचंभित रह गए।पापा ने हिम्मत करते हुए कहा-समाज क्या कहेगा बेटी?लोग क्या कहेंगे?
सरोज ने आत्मविश्वास के साथ कहा-पापा!अगर लोगों के डर से कल्पना चावला को उसके पापा ने रोका होता तो क्या आज कल्पना चावला को कोई जानता? सानिया मिर्जा,सायना नेहवाल, किरन बेदी और न जाने कितनी ही ऐसी लड़कियां आज गुमनाम होती।मुझे भी कुछ बनना है पापा!
पर बेटी रिश्तेदार व परिवार वाले क्या कहेंगे? मां ने दबे स्वर में पूछा।
सरोज ने अपने मां के हाथों को अपने सर पर रखते हुए कहा-9 महीने आपने मुझे अपने गृभ में रखा था मां,किसी रिश्तेदार या परिवार वालों ने नहीं।मुझे आप दोनों की इजाजत की जरूरत है मां।
ओर हां पापा! आपने मुझे बचपन से जो शिक्षा दी है मैं तो वहीं करने की इजाजत मांग रही हूं पापा!आप अपने दिए हुए संस्कारो पर यकीन रखीए पापा! मैं कभी कोई ऐसा काम नहीं करूंगी जिससे आपको दुःख हो।
पापा ने भरे गले से कहा- इस कलयुग में लोग अपने मां-बाप की सेवा नहीं कर पाते है,ओर तुम तो समाज की सेवा करने जा रही हो तो मैं तुम्हे कैसे रोक सकता हूं? हमारा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है बेटी!
अपनी बेटी सरोज को सीने से लगाए हुए पति व पत्नी को वो खुशी हो रही थी जिसके लिए खुद भगवान भी तरसते हैं।
धन्य है वो मां-बाप जो अपनी संतान को ऐसे संस्कार देते है।धन्य है वो बेटी जो ऐसे मां-बाप की सन्तान है।
लेखक- अनिल कुमार अमरपुरा
नहीं-नहीं हमारी बिटिया ऐसी नहीं है,हमने भला उसे पालने में कोई कमी छोड़ी है,हमने उसे संस्कार दिए है।
बरामदे में खड़ी उनकी लाडली बेटी सरोज यह सब सुन रही थी।अरे बेटी!तुम कब आई?पापा ने सकपकाते हुए पूछा।
पापा मुझे शादी नहीं करनी!बेटी सरोज ने हिम्मत करते हुए कहा।कमरे में खामोशी छा गई।पापा मुझे वो सब नहीं करना जो एक लड़की हमेशा से करती आई है।मुझे शादी के बन्धन में मत बांधो।मुझे समाज के लिए कुछ करना है,आपका नाम रोशन करना है,मुझे भारत देश का नाम रोशन करना है पापा!सरोज ने एक सांस में सब कुछ बोल दिया।
बचपन में जीवों पर दया करने का पाठ पढ़ाने वाली मां व समाज सेवा से ईश्वर प्राप्ति का पाठ पढ़ाने वाले पापा,दोनों अपनी बेटी के मुख से यह बात सुनकर अचंभित रह गए।पापा ने हिम्मत करते हुए कहा-समाज क्या कहेगा बेटी?लोग क्या कहेंगे?
सरोज ने आत्मविश्वास के साथ कहा-पापा!अगर लोगों के डर से कल्पना चावला को उसके पापा ने रोका होता तो क्या आज कल्पना चावला को कोई जानता? सानिया मिर्जा,सायना नेहवाल, किरन बेदी और न जाने कितनी ही ऐसी लड़कियां आज गुमनाम होती।मुझे भी कुछ बनना है पापा!
पर बेटी रिश्तेदार व परिवार वाले क्या कहेंगे? मां ने दबे स्वर में पूछा।
सरोज ने अपने मां के हाथों को अपने सर पर रखते हुए कहा-9 महीने आपने मुझे अपने गृभ में रखा था मां,किसी रिश्तेदार या परिवार वालों ने नहीं।मुझे आप दोनों की इजाजत की जरूरत है मां।
ओर हां पापा! आपने मुझे बचपन से जो शिक्षा दी है मैं तो वहीं करने की इजाजत मांग रही हूं पापा!आप अपने दिए हुए संस्कारो पर यकीन रखीए पापा! मैं कभी कोई ऐसा काम नहीं करूंगी जिससे आपको दुःख हो।
पापा ने भरे गले से कहा- इस कलयुग में लोग अपने मां-बाप की सेवा नहीं कर पाते है,ओर तुम तो समाज की सेवा करने जा रही हो तो मैं तुम्हे कैसे रोक सकता हूं? हमारा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है बेटी!
अपनी बेटी सरोज को सीने से लगाए हुए पति व पत्नी को वो खुशी हो रही थी जिसके लिए खुद भगवान भी तरसते हैं।
धन्य है वो मां-बाप जो अपनी संतान को ऐसे संस्कार देते है।धन्य है वो बेटी जो ऐसे मां-बाप की सन्तान है।
लेखक- अनिल कुमार अमरपुरा